hindisamay head


अ+ अ-

कविता

बचा रह जाए प्रेम

विशाल श्रीवास्तव


कठिन दुपहरियों में
जब धूप सोख लेती थी सारी दुनिया का रंग
और फीके श्वेत श्याम दृश्यों में
खिलखिलाहट की तरह उड़ता था
तुम्हारा धानी दुपट्टा
मैं था 
कि सोचता था
कि अभी बोलूँगा अपनी गरम साँसों के सहारे
प्यार जैसा कोई नीम नम शब्द
और वो किसी नाव की तरह तैर जाएगा
तुम्हारे कानों की लौ तक
 
मैंने सोचा था कि तमाम
जंगल, पहाड़ लाँघकर
सर सर सर
मैं दौड़ता जाऊँगा और लाऊँगा
तुम्हारे बालों के लिए
उदास बादल के रंग वाला फूल
 
पर यह जीवन था 
और उसमें धरती से ज्यादा 
लोगों के दिमाग में जंगल थे
उनके दिलों में भरे थे पहाड़
 
संभव था सिर्फ इतना
कि किसी शैवाल की तरह बस जाऊँ 
तुम्हारे मन की अंतरतम सतह पर चुपचाप
 
बचा रह जाए प्रेम 
बस किसी मद्धिम आँच की तरह 
पूरता हुआ हमारे जीवन को
अपने जादुई नरम सेंक से
 

End Text   End Text    End Text

हिंदी समय में विशाल श्रीवास्तव की रचनाएँ